जनजाति विकास में साक्षरता की भूमिका
(छग राज्य क¢ संदर्भ में
निस्तार कुजूर1’एवं बी एल सोनेकर2
1सहा. प्राध्यापक (समाजशास्त्र)ए समाजशास्त्र अध्ययनशाला, पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर (छ ग
2सहा. प्राध्यापक (अर्थशास्त्र)ए अर्थशास्त्र अध्ययनशाला, पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर (छ.ग
सारांश
जनजातियों में साक्षरता के विकास के लिए राज्य सरकार को अनेक योजनाओं को संचालित करने की आवश्यकता है। इसका कारण यह है कि जनजाति एक ऐसा मानव समूह है, जो न केवल आर्थिक रूप से बल्कि सामाजिक रूप से भी पिछड़े हुए हैं। इसका अनेक कारण है, उनमें से प्रमुख कारण इन जनजातियों में शिक्षा का कम विकास होना है और यदि हम इनके पिछड़ेपन को दूर करना चाहते हैं या इनके जीवन में खुशहाली लाना चाहते हैं, तो सरकार को पूरी ईमानदारी के साथ शिक्षा से संबंधित योजनाओं को संचालित करना होगा, जिससे कि जनजाति विकास की मुख्यधारा से जुड़ सके।
प्रस्तावनारू
साधारणतः जनजाति से आशय एक ऐसा मानव समूह से लगाया जाता है जिनक¢ सदस्य एक निश्चित भू-भाग में निवास करते हैं अ©र उनकी अपनी एक भाषा, संस्कृति एवं रीति रिवाज ह¨ती है ज¨ किसी दुर्गम या भ©ग¨लिक रूप से पिछड़े हुए क्षेत्र¨ं में जीवन व्यतीत करते हैं इस संदर्भ में डाॅ. मजूमदार ने कहा है - ””एक जनजाति परिवार परिवार¨ं का संकलन है जिसे एक सामान्य नाम क¢ द्वारा पहचाना जाता है””। यह सच है कि उनकी संस्कृति अन्य समुदाय से भिन्न ह¨ते हैं लेकिन इसी आधार पर हम इन जनजातिय¨ं क¨ पिछड़े हुए नहीं कह सकते बल्कि इनक¢ पिछड़ेपन क¢ प्रमुख कारण आर्थिक, सामाजिक एवं प्राकृतिक दशाअ¨ं क¢ साथ-साथ साक्षरता का कम ह¨ना है।
साक्षरता का आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण स्थान होता है, क्यांेकि साक्षरता श्रमिकों की कार्यकुशलता में वृद्धि कर मानवीय साधनांे को बढ़ाती है। साक्षरता द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों मंे समृद्धि के नए-नए मार्ग सुलभ होते हैं, जैसे - ग्रामीण कृषि ज्ञान का उपयोग कर अपने उत्पादन को बढ़ाते हैं। साथ ही प्राकृतिक साधनों का सदुपयोग कर आर्थिक प्रगति का मार्ग प्रशस्त करते हैं। इसी प्रकार न्यूमैन का विचार है कि शिक्षा व्यक्तियों में सोचने, समझने, तर्क देने, तुलना करने, भेद करने एवं विश्लेषण करने की क्षमता का विकास करती है। इससे ज्ञात होता है कि यदि जनजातियों को विकास की मुख्यधारा में हम जोड़ना चाहते हैं तो इन जनजातियों में शिक्षा से संबंधित योजनाओं को पूरी ईमानदारी के साथ लागू करना होगा।
उद्देश्य रू
1. जिलेवार जनजाति साक्षरता क¢ आधार पर कार्य-सहभागिता दर को ज्ञात करना।
2 जनजाति शिक्षा में विकास क¢ लिए राज्य-सरकार द्वारा चलाये जा रहे य¨जनाअ¨ं का मूल्यांकन करना ।
3. जनजाति शिक्षा समस्याएँ क¨ जानना एवं सुझाव देना।
अध्ययन का विश्लेषणरू
1. जिलेवार जनजाति साक्ष्रता क¢ आधार पर कार्य सहभागिता दर क¨ ज्ञात करना ।
क्र. सहभागिता साक्षरता दर अर्थ सहभागिता
1. छत्तीसगढ़ 52.1 53.4
2. क¨रिया 51.9 57.0
3 सरगुजा 48.3 53.1
4. जशपुर 61.9 54.8
5. क¨रबा 49.7 50.4
6. जांजगीर चांपा 56.9 48.2
7 बिलासपुर 52.0 50.9
8 कवर्धा 44.2 52.0
9 राजनांदगांव 75.0 55.7
10 दुर्ग 73.3 48.6
11 रायपुर 57.0 50.3
12 महासमुंद 60.0 52.3
13 धमतरी 68.3 55.9
14 कांक¢र 68.4 55.4
15 बस्तर 35.1 55.4
16 दंतेवाड़ा 21.8 55.4
तालिका से ज्ञात ह¨ता है कि 16 जिल¨ं में से 9 जिल¨ं में साक्षरता दर राज्य की कुल साक्षरता दर से ्अधिक है जिसमें सबसे अधिक साक्षरता दर राजनांदगाँव 75 प्रतिशत, दुर्ग 73.3 प्रतिशत, कांक¢र 68.4 प्रतिशत है; जबकि 7 जिल¨ं में साक्षरता दर राज्य क¢ कुल साक्षरता प्रतिशत से कम है, जिसमें सबसे कम साक्षरता दंतेवाड़ा 21.8 प्रतिशत, बस्तर 35.1 प्रतिशत पाया गया है। यदि इनक¢ कारणों को देखा जाए त¨ जिन जिलों में वृद्धि हुई है, उसका प्रमुख कारण विकसित जिल¨ं से जुड़ा हुआ होना है । जिन जिल¨ं मे कमी पायी गयी है, उनका पिछड़े क्षेत्रों में ह¨ना पाया गया है । इसी प्रकार कार्य सहभागिता क¢ आधार पर कुल 16 जिल¨ं में 6 जिले ऐसे पाये गये ज¨ राज्य की कार्य-सहभागिता दर से अधिक है जिसमें सबसे अधिक कांक¢र 57.2 प्रतिशत क¨रिया जिला 57.0 प्रतिशत पाया गया; जबकि 10 जिले ऐसे पाये गये ज¨ राज्य की कार्य सहभागिता दर से कम है जिसमें सबसे कम जांजगीर 48.6 प्रतिशत, दुर्ग 48.6 प्रतिशत पाया गया है ।
2. राज्य सरकार द्वारा जनजाति शिक्षा में विकास क¢ लिए चलाए जा रहे य¨जनाअ¨ं का एक मूल्यांकनरू
जनगणना 2001 क¢ अनुसार राज्य की अ©सत साक्षरता 64.70 प्रतिशत है जिसमें पुरुष साक्षरता 77.40 प्रतिशत तथा महिला साक्षरता 51.10 प्रतिशत है जबकि इसकी तुलना में जनजाति साक्षरता राज्य में मात्र 52.01 प्रतिशत है जिसमें पुरुष साक्षरता 60 प्रतिशत एवं महिला साक्षरता
39.30 प्रतिशत है ज¨ की राज्य की अ©सत साक्षरता से काफी कम है ज¨ इनक¢ विकास में बाधक बने हुए हैं। यही कारण है कि राज्य सरकार जनजातिय¨ं क¢ शैक्षणिक विकास क¢ लिए अनेक कार्यक्रम संचालित कर रहे हैं, जिसमें छात्रावास, आश्रम य¨जना एवं छात्रवृत्ति य¨जना प्रमुख हैं
छात्रावास एवं आश्रम य¨जनारू
वर्ष छात्रावास (कुल संस्थाएँ) आश्रम (कुल संस्थाएँ)
2000-01 994 516
2000-02 994 516
2002-03 1003 523
2003-04 1061 724
2004-05 1061 754
2005-06 1115 781
2006-07 1257 911
2007-08 1550 1024
2009-10 1406 1110
राज्य छात्रवृत्ति य¨जना
अनुसूचित जनजातिय¨ं क¢ छात्र-छात्राअ¨ं क¨ ज¨ विभिन्न शैक्षणिक संस्थाअ¨ं में अध्ययनरत है उनक¢ शैक्षणिक विकास में प्र¨त्साहन क¢ लिए विभिन्न छात्रवृत्ति प्रदान की जाती है -
क्र. छात्रृवत्ति वर्ष 2001-02 वर्ष 2009-10 राशि
1 कक्षा तीसरी से पांचवी तक 25 250
2 कक्षा 6वीं से 8वीं तक
अ. बालक
ब. बालिका
30
40
300
400
3. कक्षा 9 वीं से 10 वीं तक
अ. बालक
ब. बालिका
40
50
400
500
4. 11 वीं एक उच्च कक्षा
अ. छात्रावासी
ब. गैर छात्रावासी
-
-
740
330
भारत सरकार द्वारा की जा रही प¨स्ट मैट्रिक छात्रवृत्ति क¢ अलावा राज्य शासन द्वारा 100 रुपए प्रतिमाह अतिरिक्ति छात्रवृत्ति दी जाती है, ताकि अनुसूचित जनजाति क¢ छात्र-छात्राएँ उच्च शिक्षा क¢ क्षेत्र में आगे आए ।
समस्याएँ एवं सुझावरू
राज्य सरकार द्वारा जनजातिय¨ं में शिक्षा क¢ विकास क¢ लिए अनक¢ कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं इसक¢ बाद भी आज अधिकांश अनुसूचित जनजातियाँ अशिक्षित ह¨ने क¢ साथ-साथ अन्धविश्वास से जकड़े हुए हैं जिसक¢ कारण ये शिक्षा क¢ प्रति कम रुचि दिखाई देते हैं। यही कारण है कि जनजाति बच्चे स्कूल जाने क¢ स्थान पर श्रम करते हुए दिखाई देते हैं या घर क¢ कायर्¨ं में सहय¨ग करते हैं। चाहे वह छ¨टे-भाई बहन की देखभाल ह¨ या ताटपट्टी बनाने ह¨ या रस्सा बनाने का काम ह¨ या महुवा बीनने का कम ह¨ या जंगल की लकड़ी काटने का काम ह¨; अ©र ज¨ बच्चे बच जाते हैं, वे गाँव की गलिय¨ं में घूमते हुए दिखाई देते हंै। साथ ही जनजातियाँ ऐसे स्थानों पर निवास करती हैं, जहाँ सामान्यतः अधिक र¨जगार उपलब्ध नहीं ह¨ते हैं। यदि अ©द्य¨गिक क्षेत्र¨ं में निवास करने वाले समूह¨ं क¨ छ¨ड़ दे, त¨ इन जनजातिय¨ं क¢ पास परम्परागत कायर्¨ं क¨ छ¨ड़कर अन्य क¨ई अन्य कार्य नहीं ह¨ता है ज¨ इनकी आमदानी में वृद्धि कर सक¢। इससे इनकी गरीबी अ©र बढ़ती चली जाती है। इनकी गरीबी क¨ दूर करने क¢ लिए र¨जगार गारन्टी य¨जना क¢ अंतर्गत 100 दिन का र¨जगार उपलब्ध कराने का सरकार द्वारा प्रावधान है, जिसका लाभ ये जनजाति नहीं उठा पा रहे हैं, क्य¨ंकि यह कार्यक्रम अप्रैल, मई अ©र जून में चलता है जिस समय ये जनजातियाँ महुआ अ©र चिर©ंजी बीनने का काम करते हैं अ©र जून, जुलाई, अगस्त अ©र सितम्बर में खाली रहते हं,ै तब यह कार्यक्रम बंद रहता है। इस कारण से इन जनजातिय¨ं की आर्थिक स्थिति में सुधार नहीं ह¨ पाता है अतः शिक्षा ही एक ऐसा माध्यम है जिसक¢ द्वारा इन जनजातिय¨ं क¨ विकास की मुख्यधारा में ज¨ड़ा जा सकता है, जिसक¢ लिए निम्न सुझाव दिए जा सकते हैं ।
सुझावरू
ऽ शिक्षा क¢ प्रति जागरूकता पैदा की जाए इसक¢ लिए मीडिया का सहारा लिया जाना चाहिए।
ऽ जनजाति महिलाअ¨ं की शिक्षा को प्राथमिकता दी जाए।
ऽ जनजाति शिक्षा निवेश में वृद्धि की जाए ।
ऽ छात्रावास/ आश्रम य¨जना जैसी संस्थाअ¨ं में अ©र अधिक वृद्धि की जाए। साथ ही इसे अ©र अधिक सुविधायुक्त बनाया जाए ।
ऽ छात्रवृत्ति की दर में अ©र अधिक वृ्द्धि की जाए, ताकि परिवार पर आर्थिक ब¨झ कम से कम पढ़े ।
ऽ जनजाति छात्र¨ं की शिक्षा क¢ क्षेत्र में पूर्णतः निशुल्क शिक्षा प्रदान किया जाना चाहिए, ताकि शिक्षा क¢ प्रति इनमें रूचि पैदा ह¨ सक¢।
ऽ जनजाति शिक्षा पूर्णतः र¨जगार मूलक ह¨ना चाहिए ताकि विकास की मुख्यधारा में जुड़ सक¢ ।
ऽ जनजाति शिक्षा क¨ बढ़ावा देने क¢ लिए स्वयंसेवी संस्थाअ¨ं से सहय¨ग लेनी चाहिए, ज¨ सेवा भाव से काम करते हैं ।
ऽ उच्च शिक्षा क¢ प्रति प्र¨त्साहित किया जाए ।
संदर्भरू
ऽ भारत की जनगणना 2001
ऽ जनजाति प्रशासकीय प्रतिवेदन -2009-10
ऽ छत्तीसगढ़ विकास 2008
Received on 29.10.2010
Accepted on 13.11.2010
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Research J. of Humanities and Social Sciences. 1(2): July-September 2010, 54-55